हमारी नाकामी के सबब हमको हर बार मिले...-- Kalingaa...
खुशी बांटने चले थे, अब हैं शिकवे और गिले...
था राख का ढेर, फिर भी हम अपना दामन जला बैठे..
मिलती थी जो चीज़ ज़माने में कम, वो माँग बैठे..
पत्थर दिल थे हम, भूल से उनसे दिल लगा बैठे..
भूलना था उनको, उनकी यादों को सीने से लगा बैठे..
करना था आबाद ख्वाबों का शहर, कलिंग का शमशान बना बैठे..
लगता है रात बाकी है तभी फूल बगिया में नहीं खिले...
हमारी नाकामी के सबब हमको हर बार मिले...
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