कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी,-- Kalingaa...
यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता।
तुम मेरी ज़िन्दगी हो, ये सच है,
ज़िन्दगी का मगर भरोसा क्या।
जी बहुत चाहता है सच बोलें,
क्या करें हौसला नहीं होता।
वो चाँदनी का बदन खुशबुओं का साया है,
बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है।
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