रात का किस्सा सुनने बैठा हूँ
क्यूंकी मैं आजकल रोशनियों से डरता हूँ
कैसे कह दें कि हम बहुत कमज़ोर हैं
इसीलिए हर बार कोई नया बहाना करता हूँ
हर रात कुछ नये तिनके बटोरता हूँ
फिर कुछ पुराने आशियाने तोड़ता हूँ
हर रात कुछ नये किस्से बनाता हूँ
फिट बहुत से पुराने गीत भुला देता हूँ
मुझको सच्चा यकीन नहीं है कि मैं सही हूँ
किंतु मैं अपने फ़ैसले से शर्मिंदा भी नहीं हूँ
रास्ता बदल गया, हमराही भटक गये
पदचिन्ह नहीं रहे, मंज़िले अलग अलग होती गयीं
चलने की कोशिशें तो हुई, लेकिन मैं वहीं का वहीं हूँ
बदलने की कोई कोशिश नहीं की, मैं वोही का वोही हूँ
-- Kalingaa...
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