आज फिर तेरे नाम एक ग़ज़ल लिख रहा हूँ....
तेरी खूबसूरती को एक चाँद लिख रहा हूँ
तेरी भीगी जुल्फों को चंचल हवा लिख रहा हूँ
तेरी लबों की तड़फ़ को मदहोश शराब लिख रहा हूँ
तेरे हँसने के अंदाज़ को तेरा शबाब लिख रहा हूँ
तेरे हर एक अश्क़ को 'कलिंग' का कोहिनूर लिख रहा हूँ
तेरे नाज़ुक कदमों को गुलाब की पंखुड़ी लिख रहा हूँ
तेरी दिलखुश आवाज़ को राग और तरंग लिख रहा हूँ
तेरी मंज़ूरी तेरी नाराज़गी को अपना नसीब लिख रहा हूँ
तुझे सामने देख तुझे 'कलिंग' के करीब लिख रहा हूँ
तेरे संग बिताए हर पल को अपना इतिहास लिख रहा हूँ
तुम्हें फिर देख पाने की चाह को अपनी प्यास लिख रहा हूँ
तेरे हर अनबूझे हुए सवाल को अपनी आरज़ू लिख रहा हूँ
तेरे हर जवाब को अपना कर्म धर्म लिख रहा हूँ
तेरी लाज़ को तेरा सबसे कीमती श्रँगार लिख रहा हूँ
तुझे पाने की हसरत को 'कलिंग' का अलंकार लिख रहा हूँ
तुम्हे कभी सच ना बता पाना अपना अफ़सोस लिख रहा हूँ
तुम्हारा सच ना जान पाना भी अपना अफ़सोस लिख रहा हूँ
तुझे देख धड़कने वाले दिल को गुस्ताख लिख रहा हूँ
तुझे जीते-जी मैं अपने खून से माफ़ लिख रहा हूँ
तेरी आखों की कशिश को ज़ाम लिख रहा हूँ
तेरे किसी उदास लम्हे को मैं अपनी शाम लिख रहा हूँ
कुछ और नहीं याद, बस एक ग़ज़ल तेरे नाम लिख रहा हूँ...
-- Kalingaa...
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