जब तक होश रहा हम गम को नशा समझ पी गये
किसी किसी को नसीब में जो भी मिला वो जी गये
वक़्त के साथ ना कोई अपना रहा, यार दोस्त भी गये
जो ज़ख़्म मिले हमने छुपा लिए, 'कलिंग' खुद ही सी गये
हम मानते थे जिनको खुदा वो तो इंसान निकले
हमारे अपने सपनों में भी कुछ काले शैतान निकले
जब मिले वो आज हमसे अचानक नये रास्ते पर
ना उनकी ना मेरी कोशिश रही कि कोई पहचान निकले
हर कोई चाहता था मेरी किस्मत का एक टुकड़ा
काश 'कलिंग' बाँट पाता खुद को हर किसी के लिए
आज मैं बिखरा हुआ नहीं, बस अकेला सा हूँ
नाराज़ तो हूँ लेकिन खुद से, बस बेबसी के लिए
पत्थर के सामने सर झुकाके भी पाते हैं आसमान को
हम तो धड़कते पाक़ दिल को भी पत्थर का बना बैठे
केवल हमपे ही क्यूँ दिया गया सारा इल्ज़ाम हर रिश्ते ने
वो और उनके खुदा भी तो बिन बतियाए हमे बेवफा बना बैठे
-- Kalingaa...
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