An answer to the question of what Work over Life...
दीवाना आदमी को बनाती हैं रोटियाँ
खुद नाचती हैं सबको नचाती हैं रोटियाँ
दीवाना आदमी को बनाती हैं रोटियाँ
बूढ़ा चलाए ठेले को फाकों से झूल के
बच्चा उठाए बोझ खिलौनों को भूल के
देखा ना जाए जो, सो दिखाती हैं रोटियाँ
दीवाना आदमी को बनाती हैं रोटियाँ
बैठी है जो चेहरे पे मल के हर तरह का श्रँगार
दुनिया बुरा कहे इन्हे पर मैं तो ये कहूँ
कोठे पे बैठ, कोठे पे बैठ आँख लड़ाती हैं रोटियाँ
दीवाना आदमी को बनाती हैं रोटियाँ
कहता था इक फ़क़ीर की रखना ज़रा नज़र
रोटी को आदमी ही नही खाते बेख़बर
अक्सर तो आदमी को खाती हैं रोटियाँ
दीवाना आदमी को बनाती हैं रोटियाँ
तुझको पते की बात बटाओ मैं जान-ए-मान
क्यूँ चाँद पर पहुँचने की इंसान को है लग्न
इंसान को चाँद में नज़र आती हैं रोटियाँ
दीवाना आदमी को बनाती हैं रोटियाँ
-- Kalingaa...
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