Ek Chirag Tanha Mazar Pe....

दो अश्क मेरी याद में बह जाते तो क्या जाता
चंद कलियाँ लाश पे बिछा जाते तो क्या जाता

आये हो मैय्यत पर सनम, ओढ़ कर नकाब तुम
अगर यह चाँद सा चेहरा दिखा जाते तो क्या जाता

पूछेंगे जब लोग तुमसे, किसका था यह जनाज़ा
बेनाम रिश्ते तो एक नाम दे जाते तो क्या जाता

सबके सामने मेरे इश्क को रुशवा कर दिया
नज़र की बेवफाई छुपा जाते तो क्या जाता

हर ज़ख्म ने मेरे, तुम्हे ही हैं दुआ उम्र भर की
इस बार महलम का नाम भी लेते तो क्या जाता

तुम्हे याद करते करते ज़िन्दगी दे दी कलिंग ने
इक चिराग तन्हा मजार ओए जला जाते तो क्या जाता

#Kalingaa...

Tum To Thehre Pardesi... Altaf Raja

Super hit song of 90's.....
reminds me of my childhood when it used to be played at each nook and corner of streets ...buses....shops....and then the Pooja Pandals...all night long...they were days to cherish for sure and so is this song :)

तुम तो ठहरे परदेसी, साथ क्या निभाओगे...
तुम तो ठहरे परदेसी, साथ क्या निभाओगे...

सुबह पहली... सुबह पहली... सुबह पहली... गाड़ी से घर को लौट जाओगे...

तुम तो ठहरे परदेसी साथ क्या निभाओगे...

जब तुम्हें अकेले में मेरी याद आएगी...
जब तुम्हें अकेले में मेरी याद आएगी...

खीचें खीचें हुए रहेतीं हो क्यों...
खीचें खीचें हुए रहेतीं हो ध्यान किसका हैं...
ज़रा बताओ तो यह इम्तिहान किसका हैं...
हमें भुला दो मगर यह तो याद ही होगा... हमें भुला दो मगर यह तो याद ही होगा...
नयी सड़क पे पुराना मकान किसका हैं...

जब तुम्हें अकेले में मेरी याद आएगी...
आसुओं की... आसुओं की...
आसुओं की बारिश में तुम भी भीग जाओगे...
आसुओं की बारिश में तुम भी भीग जाओगे...

गम के धूप में दिल की हसरतें ना जल जाए...
गम के धूप में दिल की हसरतें ना जल जाए...

तुझको यह तुझको देखेंगे सितारें तो ज़िया माँगेंगे...
तुझको देखेंगे सितारें तो ज़िया माँगेंगे...
और प्यासे तेरी ज़ुल्फो से घटा माँगेंगे...
अपने काँधे से दुपपता ना सरकने देना...
वरना बूढ़े भी जवानी की दुवा माँगेंगे...
ईमान से...

गम के धूप में दिल की हसरतें ना जल जाए...
गम के धूप में दिल की हसरतें ना जल जाए...

गेसुओ के... गेसुओ के... साए में कब हमें सुलाओगे...
गेसुओ के... गेसुओ के... साए में कब हमें सुलाओगे...

तुम तो ठहरे परदेसी, साथ क्या निभाओगे...

मुझको कत्ल कर डालो शौक से मगर सोचो...
मुझको कत्ल कर डालो शौक से मगर सोचो...

इस शहरे नामुराद की इज़्ज़त करेगा कौन...
अरे हम ही चले गये तो मोहब्बत करेगा कौन...
इस घर की देखभाल को वीरानियाँ तो हो..
जाले हटा दिए तो हिफ़ाज़त करेगा कौन...

मुझको कत्ल कर डालो शौक से मगर सोचो...
मेरे बाद... मेरे बाद... तुम किस पर ये बिजलियाँ गिरावगे...

तुम तो ठहरे परदेसी, साथ क्या निभाओगे...

यू तो ज़िंदगी अपनी मयकदे में गुज़री हैं...
यू तो ज़िंदगी अपनी मयकदे में गुज़री हैं...

अश्को में हुसनो रंग समेट रहा हू मैं...
आँचल किसी का थाम के रोता रहा हू मैं...
निखरा हैं जाके अब कही चेहरा शहूर का...
बरसो इसे शराब से धोता रहा हू मैं...

यू तो ज़िंदगी अपनी मयकदे में गुज़री हैं...
बहकी हुई बहार ने पीना सीखा दिया...
बदमस्त बरगो बार ने पीना सीखा दिया...
पीता हूँ इस गरज से के जीना हैं चार दिन...पीता हूँ इस गरज से के जीना हैं चार दिन...
मरने के इंतेजार ने पीना सीखा दिया...

यू तो ज़िंदगी अपनी मयकदे में गुज़री हैं...
इन नशीली... इन नशीली... इन नशीली... आँखों से कब हमें पीलाओगे...
इन नशीली आँखों से कब हमें पीलाओगे...
तुम तो ठहरे परदेसी, साथ क्या निभाओगे...

क्या करोगे तुम आख़िर क़ब्र पर मेरी आकर...
क्या करोगे तुम आख़िर क़ब्र पर मेरी आकर...

क्यों के जब तुमसे इतेफ़ाक़न... जब तुमसे इतेफ़ाक़न... मेरी नज़र मिली थी...
अब याद आ रहा हैं... शायद वो जनवरी थी...
तुम यूँ मिली दुबारा... फिर माहे फ़रवरी में...
जैसे के हमसफ़र हो... तुम राहें ज़िंदगी में...
कितना हसीन ज़माना... आया था मार्च लेकर...
राहें वफ़ा पे थी तुम... वादों की टॉर्च लेकर...
बाँधा जो अहदे उलफत... अप्रैल चल रहा था...
दुनिया बदल रही थी... मौसम बदल रहा था...
लेकिन माई जब आई... जलने लगा ज़माना...
हर श्कस की ज़बान पर... था बस यही फसाना...
दुनिया के दर्र से तुमने... बदली थी जब निगाहें...
था जून का महीना... लब पे थी गर्म आहें...
जुलाई में जो तुमने... की बातचीत कुछ कम...
थे आसमान पे बादल... और मेरी आँखें पूरनम...
माहे अगस्त में जब... बरसात हो रही थी...
बस आसुओं की बारिश... दिन रात हो रही थी...
कुछ याद आ रही हैं... वो माह था सितंबर...
भेजा था तुमने मुझको... करके वफ़ा का लेटर...
तुम गैर हो रही थी... ओक्टूबर आ गया था...
दुनिया बदल चुकी थी... मौसम बदल चुका था...
जब आ गया नवंबर... ऐसी भी रात आई...
मुझसे तुम्हें छुड़ाने... सजकर बारात आई...
बेखैफ़ था दिसंबर... ज़ज्बात मार चुके थे...
मौसम था सर्द उसमें... अरमान बिखर गये थे...

लेकिन यह क्या बताउन अब हाल दूसरा हैं...
लेकिन यह क्या बताउन अब हाल दूसरा हैं...

लेकिन यह क्या बताउन अब हाल दूसरा हैं...
अरे वो साल दूसरा था यह साल दूसरा हैं...


क्या करोगे तुम आख़िर क़ब्र पर मेरी आकर...
थोड़ी देर... थोड़ी देर... थोड़ी देर... रो लोगे और भूल जाओगे...

तुम तो ठहरे परदेसी साथ क्या निभाओगे...
तुम तो ठहरे परदेसी साथ क्या निभाओगे...

सुबह पहली गाड़ी से घर को लौट जाओगे...
सुबह पहली गाड़ी से घर को लौट जाओगे...

-- Kalingaa...
Keep Smiling :)

Step....

It's a bright sunny day in desert, time is of holy month
I get to know importance of faith in religion
From a window of my flat,
I can see people who have faith on God,
still they are running to do one more fraud
it's contradiction of human character.
we want to get more to be satisfied
we cheat others and still want to be purified
we get cheated and want others to be crucified

Every religion tells human about humanity
Every religion speaks of purification by fasting
still we try to get extra luxury
and don't care about broken bonds which could have been everlasting.

I want to take one step towards truth
the step taken by Ashoka into the battlefield of Kalingaa
I am not so strong & stone-willed
I feel weak and disheartened because I can't change the world
But I take a pledge that I'll move myself towards the right path
May be I won't become a shining star or a legend
but I'll be forgotten as a good man.

I want to take one step towards truth...

-- Kalingaa...
(culmination of thoughts in one lonely day at shores of Persian gulf)...

Blowin' in thw wind - bob dylan...

How many roads must a man walk down
Before you call him a man?
Yes, 'n' how many seas must a white dove sail
Before she sleeps in the sand?
Yes, 'n' how many times must the cannon balls fly
Before they're forever banned?
The answer, my friend, is blowin' in the wind,
The answer is blowin' in the wind.

-- Kalingaa...

Parshuram Ki Pratiksha - Ramdhari Singh 'Dinkar'

परशुराम की प्रतीक्षा - रामधारी सिंह "दिनकर"
खण्ड एक:
गरदन पर किसका पाप वीर ! ढोते हो ?
शोणित से तुम किसका कलंक धोते हो ?


उनका, जिनमें कारुण्य असीम तरल था,
तारुण्य-ताप था नहीं, न रंच गरल था;
सस्ती सुकीर्ति पा कर जो फूल गये थे,
निर्वीर्य कल्पनाओं में भूल गये थे;


गीता में जो त्रिपिटक-निकाय पढ़ते हैं,
तलवार गला कर जो तकली गढ़ते हैं;
शीतल करते हैं अनल प्रबुद्ध प्रजा का,
शेरों को सिखलाते हैं धर्म अजा का;


सारी वसुन्धरा में गुरु-पद पाने को,
प्यासी धरती के लिए अमृत लाने को
जो सन्त लोग सीधे पाताल चले थे,
(अच्छे हैं अबः; पहले भी बहुत भले थे।)


हम उसी धर्म की लाश यहाँ ढोते हैं,
शोणित से सन्तों का कलंक धोते हैं।
खण्ड दो:

हे वीर बन्धु ! दायी है कौन विपद का ?
हम दोषी किसको कहें तुम्हारे वध का ?


यह गहन प्रश्न; कैसे रहस्य समझायें ?
दस-बीस अधिक हों तो हम नाम गिनायें।
पर, कदम-कदम पर यहाँ खड़ा पातक है,
हर तरफ लगाये घात खड़ा घातक है।


घातक है, जो देवता-सदृश दिखता है,
लेकिन, कमरे में गलत हुक्म लिखता है,
जिस पापी को गुण नहीं; गोत्र प्यारा है,
समझो, उसने ही हमें यहाँ मारा है।


जो सत्य जान कर भी न सत्य कहता है,
या किसी लोभ के विवश मूक रहता है,
उस कुटिल राजतन्त्री कदर्य को धिक् है,
यह मूक सत्यहन्ता कम नहीं वधिक है।


चोरों के हैं जो हितू, ठगों के बल हैं,
जिनके प्रताप से पलते पाप सकल हैं,
जो छल-प्रपंच, सब को प्रश्रय देते हैं,
या चाटुकार जन से सेवा लेते हैं;


यह पाप उन्हीं का हमको मार गया है,
भारत अपने घर में ही हार गया है।


है कौन यहाँ, कारण जो नहीं विपद् का ?
किस पर जिम्मा है नहीं हमारे वध का ?
जो चरम पाप है, हमें उसी की लत है,
दैहिक बल को रहता यह देश ग़लत है।


नेता निमग्न दिन-रात शान्ति-चिन्तन में,
कवि-कलाकार ऊपर उड़ रहे गगन में।
यज्ञाग्नि हिन्द में समिध नहीं पाती है,
पौरुष की ज्वाला रोज बुझी जाती है।


ओ बदनसीब अन्धो ! कमजोर अभागो ?
अब भी तो खोलो नयन, नींद से जागो।
वह अघी, बाहुबल का जो अपलापी है,
जिसकी ज्वाला बुझ गयी, वही पापी है।
जब तक प्रसन्न यह अनल, सुगुण हँसते है;
है जहाँ खड्ग, सब पुण्य वहीं बसते हैं।
वीरता जहाँ पर नहीं, पुण्य का क्षय है,
वीरता जहाँ पर नहीं, स्वार्थ की जय है।


तलवार पुण्य की सखी, धर्मपालक है,
लालच पर अंकुश कठिन, लोभ-सालक है।
असि छोड़, भीरु बन जहाँ धर्म सोता है,
पातक प्रचण्डतम वहीं प्रकट होता है।


तलवारें सोतीं जहाँ बन्द म्यानों में,
किस्मतें वहाँ सड़ती है तहखानों में।
बलिवेदी पर बालियाँ-नथें चढ़ती हैं,
सोने की ईंटें, मगर, नहीं कढ़ती हैं।


पूछो कुबेर से, कब सुवर्ण वे देंगे ?
यदि आज नहीं तो सुयश और कब लेंगे ?
तूफान उठेगा, प्रलय-वाण छूटेगा,
है जहाँ स्वर्ण, बम वहीं, स्यात्, फूटेगा।


जो करें, किन्तु, कंचन यह नहीं बचेगा,
शायद, सुवर्ण पर ही संहार मचेगा।
हम पर अपने पापों का बोझ न डालें,
कह दो सब से, अपना दायित्व सँभालें।


कह दो प्रपंचकारी, कपटी, जाली से,
आलसी, अकर्मठ, काहिल, हड़ताली से,
सी लें जबान, चुपचाप काम पर जायें,
हम यहाँ रक्त, वे घर में स्वेद बहायें।


हम दें उस को विजय, हमें तुम बल दो,
दो शस्त्र और अपना संकल्प अटल दो।
हों खड़े लोग कटिबद्ध वहाँ यदि घर में,
है कौन हमें जीते जो यहाँ समर में ?


हो जहाँ कहीं भी अनय, उसे रोको रे !
जो करें पाप शशि-सूर्य, उन्हें टोको रे !


जा कहो, पुण्य यदि बढ़ा नहीं शासन में,
या आग सुलगती रही प्रजा के मन में;
तामस बढ़ता यदि गया ढकेल प्रभा को,
निर्बन्ध पन्थ यदि मिला नहीं प्रतिभा को,


रिपु नहीं, यही अन्याय हमें मारेगा,
अपने घर में ही फिर स्वदेश हारेगा।
खण्ड तीन:
किरिचों पर कोई नया स्वप्न ढोते हो ?
किस नयी फसल के बीज वीर ! बोते हो ?

दुर्दान्त दस्यु को सेल हूलते हैं हम;
यम की दंष्ट्रा से खेल झूलते हैं हम।
वैसे तो कोई बात नहीं कहने को,
हम टूट रहे केवल स्वतंत्र रहने को।


सामने देश माता का भव्य चरण है,
जिह्वा पर जलता हुआ एक, बस प्रण है,
काटेंगे अरि का मुण्ड कि स्वयं कटेंगे,
पीछे, परन्तु, सीमा से नहीं हटेंगे।


फूटेंगी खर निर्झरी तप्त कुण्डों से,
भर जायेगा नागराज रुण्ड-मुण्डों से।
माँगेगी जो रणचण्डी भेंट, चढ़ेगी।
लाशों पर चढ़ कर आगे फौज बढ़ेगी।


पहली आहुति है अभी, यज्ञ चलने दो,
दो हवा, देश की आज जरा जलने दो।
जब हृदय-हृदय पावक से भर जायेगा,
भारत का पूरा पाप उतर जायेगा;

देखोगे, कैसा प्रलय चण्ड होता है !
असिवन्त हिन्द कितना प्रचण्ड होता है !

बाँहों से हम अम्बुधि अगाध थाहेंगे,
धँस जायेगी यह धरा, अगर चाहेंगे।
तूफान हमारे इंगित पर ठहरेंगे,
हम जहाँ कहेंगे, मेघ वहीं घहरेंगे।


जो असुर, हमें सुर समझ, आज हँसते हैं,
वंचक श्रृगाल भूँकते, साँप डँसते हैं,
कल यही कृपा के लिए हाथ जोडेंगे,
भृकुटी विलोक दुष्टता-द्वन्द्व छोड़ेंगे।


गरजो, अम्बर की भरो रणोच्चारों से,
क्रोधान्ध रोर, हाँकों से, हुंकारों से।
यह आग मात्र सीमा की नहीं लपट है,
मूढ़ो ! स्वतंत्रता पर ही यह संकट है।


जातीय गर्व पर क्रूर प्रहार हुआ है,
माँ के किरीट पर ही यह वार हुआ है।
अब जो सिर पर आ पड़े, नहीं डरना है,
जनमे हैं तो दो बार नहीं मरना है।


कुत्सित कलंक का बोध नहीं छोड़ेंगे,
हम बिना लिये प्रतिशोध नहीं छोड़ेंगे,
अरि का विरोध-अवरोध नहीं छोड़ेंगे,
जब तक जीवित है, क्रोध नहीं छोड़ेंगे।


गरजो हिमाद्रि के शिखर, तुंग पाटों पर,
गुलमार्ग, विन्ध्य, पश्चिमी, पूर्व घाटों पर,
भारत-समुद्र की लहर, ज्वार-भाटों पर,
गरजो, गरजो मीनार और लाटों पर।


खँडहरों, भग्न कोटों में, प्राचीरों में,
जाह्नवी, नर्मदा, यमुना के तीरों में,
कृष्णा-कछार में, कावेरी-कूलों में,
चित्तौड़-सिंहगढ़ के समीप धूलों में—


सोये हैं जो रणबली, उन्हें टेरो रे !
नूतन पर अपनी शिखा प्रत्न फेरो रे !


झकझोरो, झकझोरो महान् सुप्तों को,
टेरो, टेरो चाणक्य-चन्द्रगुप्तों को;
विक्रमी तेज, असि की उद्दाम प्रभा को,
राणा प्रताप, गोविन्द, शिवा, सरजा को;


वैराग्यवीर, बन्दा फकीर भाई को,
टेरो, टेरो माता लक्ष्मीबाई को।


आजन्मा सहा जिसने न व्यंग्य थोड़ा था,
आजिज आ कर जिसने स्वदेश को छोड़ा था,
हम हाय, आज तक, जिसको गुहराते हैं,
‘नेताजी अब आते हैं, अब आते हैं;


साहसी, शूर-रस के उस मतवाले को,
टेरो, टेरो आज़ाद हिन्दवाले को।


खोजो, टीपू सुलतान कहाँ सोये हैं ?
अशफ़ाक़ और उसमान कहाँ सोये हैं ?
बमवाले वीर जवान कहाँ सोये हैं ?
वे भगतसिंह बलवान कहाँ सोये हैं ?


जा कहो, करें अब कृपा, नहीं रूठें वे,
बम उठा बाज़ के सदृश व्यग्र टूटें वे।


हम मान गये, जब क्रान्तिकाल होता है,
सारी लपटों का रंग लाल होता है।
जाग्रत पौरुष प्रज्वलित ज्वाल होता हैं,
शूरत्व नहीं कोमल, कराल होता है।
Keep Smiling
-- Kalinga...

Baazi-cha-e-Atfal (Ghalib)

बागीचा-ए-अत्फल है दुनिया मेरे आगे
होता है शबोरोज़े तमाशा मेरे आगे
[I perceive the world as a playground. Where dawn and dusk appear in eternal rounds]

इक खेल है औरंग-ए-सुलेमान मेरे नज़दीक
इक बात है अजाज-अ-मसीहा मेरे आगे
[In His Universal form is a plaything the throne of Solomon. The miracles of the Messiah seem so ordinary in my eyes]

जुज़ नाम, नहीं सूरत-आ-आलम मुझे मंज़ूर
जुज़ वहम, नहीं हस्ती-ए-आशिया मेरे आगे
[Without name I cannot comprehend any form. Illusionary but is the identity of all objects]

होता है निहाँ गर्द में सहरा मेरे होते
घिसता है जबीं खाक पे दरिया मेरे आगे
[My anguish envelopes the entire desert. Silently flows the river in front of my floods]

मत पूछ कि क्या हाल है मेरा, तेरे पीछे
तू देख कि क्या रंग है तेरा, मेरे आगे
[Ask not what separation has done to me. Just see your poise when I come in front of you]

सच कहते हो खुदबीन-ओ-खुद्दार हूँ, क्यों ना हूँ?
बैठा है बुत-आ-आइना-सीमा, मेरे आगे
[Truly you say that I am egotistical and proud. It is the reflection, O friend, in your limited mirror]

फिर देखिये, अंदाज़-ए-गुल-अफ्शानी-ए-गुफ्तार
रख दे कोई पैमाना-ओ-सहबा मेरे आगे
[To appreciate the style and charm of conversation. Just bring in the goblet and wine]

नफरत का गुमान गुज़रे है, मैं रश्क से गुज़रा
क्योंकर कहूँ, लो नाम ना उनका मेरे आगे
[Hatred manifests due to my envious mind. Thus I say, don't take his name in front of me]

इमान मुझे रोके है, तो खींचे है मुझे कुफ्र
काबा मेरे पीछे है, कलीसा मेरे आगे
[Faith stops me while temptations attract. Inspite of Kaaba behind and church ahead]

आशिक हूँ, पर माशूक-फरेबी है मेरा काम
मजनूं को बुरा कहती है लैला मेरे आगे
[I am the Lover, yet notorious is my charm. Thus Laila calls names to Majnu in front of me]

खुश होते हैं, पर, वस्ल में यों मर नहीं जाते
आयी शब्-आ-हिज्राँ की तमन्ना मेरे आगे
["Dies" not one though the union is a delight. In premonition of the separation night]

है मौजज़न इक कुलजूम-ए-खून, काश, यही हो
आता है, अभी देखिये, क्या क्या, मेरे आगे
[Alas, this be it, the bloody separation wave. I know not what else is in store ahead of me]

गो हाथ में जुम्बिश नहीं, आँखों में तो दम है
रहने दो अभी सागर-ओ-मीना, मेरे आगे
[Though the hands don't move, the eyes are alive. Wine and goblet, let them stay in front of me]

हम्पेश-ओ-हम्मास्त्राब-ओ-हमराज़ है मेरा
"गालिब" तो बुरा क्यों कहो, अच्छा मेरे आगे
[Says "Ghalib" Conscience is companion and trusted friend. Don't pass any judgments in front of me.]

Keep Smiling
--- Kalingaa...

Niyati..

शक्ति अगर सीमित है, तो हर चीज़ अशक्त भी है,

भुजाये अगर छोटी है, तो सागर भी सिमटा हुआ है

सामर्थ्य केवल इच्छा का दूसरा नाम है, जीवन और मृत्यु के बीच जो भूमि है,

"वो नियति की नहीं मेरी है"...

- Kalingaa...

Jabse mile hain...

जबसे मिले हैं उससे तो सबसे मिलना-मिलाना छोड़ दिया...
मेरे लिए उस पागल ने भी सारा जमाना छोड़ दिया...

उसकी चाहत की खुसबू से महकी महकी रहती हूँ...
जबसे उसका साथ मिला है इत्र लगाना छोड़ दिया...

टूटी फूटी छत के नीचे उसके साथ बहुत खुश हूँ...
मैंने उसके प्यार की खातिर राजघराना छोड़ दिया...

heard from a youtube link...
http://www.youtube.com/watch?v=046ScO9AbRQ

-Keep Smiling
-- Kalingaa...

Kuch Afsaane Likhe...

Few Thoughts on Paper

kuch mohabbat ke fasanay likhay,
kuch naay aur puranay likhay....

yaadon ka ek silsila likha,
khwab saray woh suhanay likhay....

hum nay ek mohabbat ki raat likhi,
aur kuch guzray zamanay likhay....

marmari banhon ko apna lika,
aur phir in kay nazranay likhay....

unki zulfon ko ghata sa likha,
saaye phir uss kay suhanay likhay....

khud ko phir unka Mussawir likha,
khwab phir kiya kiya najanay likhay....

kabhi kore kagaz pe salvatein likhi,
kabhi teri yaad main zamane likhay....


- Kalinga...

Luck by Chance :)

Was royalty bestowed on Warne by chance?

The best thing that happened to the Rajasthan Royals, the inaugural IPL champions, might have occurred by chance. They never intended to buy Shane Warne at the auction but ended up with him because he was the first player on sale - or so say the authors of an upcoming book 'IPL - an inside story'.

The book has what it says is an eye-witness account of the first auction by the CEO of a franchise. "Warne's was the first name that came up as the 78 players' names were picked up. But no one was willing to pick him up at the reserve price. The auction was headed for disaster within the first few minutes.

"Since [Lalit] Modi has some interest in the Jaipur team, he made eye contact with [Manoj] Badale and Co. and nudged them to start bidding. Jaipur raised the placard, hoping other teams would jump into the fray. But no other team bid for Warne. Jaipur, it seemed, was saddled with Warne." Less than four months later Jaipur had the last laugh, and the others were left looking foolish, as Warne reinvented himself with spectacular success.


Wishing second victory for Rajasthan Royals :)

-- Kalingaa...

Aarambh....

आरम्भ है प्रचंड,बोले मस्तकों के झुंड
आज ज़ंग की घडी की तुम गुहार दो
आन बान शान या की जान का हो दान
आज एक धनुष के बान पे उतार दो
आरम्भ है प्रचंड,बोले मस्तकों के झुंड...

मन करे सो प्राण दे, जो मन करे सो प्राण ले
वही तो एक सर्व शक्तिमान है...
इशर की पुकार है, यह भगवत का सार है
के युद्ध ही तो वीर का प्रमाण है...
कौरवो की भीड़ हो या पांडवो का नीड़ हो
जो लड़ सका है वो ही तो महान है...
जीत की हवस नहीं, किसी पे कोई वश नहीं
क्या ज़िन्दगी है ठोकरों पे मार दो...
मौत अंत है नहीं तो मौत से भी क्यों डरे?
यह जाके आसमान में दहाड़ दो...

आरम्भ है प्रचंड, बोले मस्तकों के झुंड

हो दया का भाव याकी शौर्य का चुनाव
याकी हार का वो घाव, तुम यह सोच लो...
याकी पूरे भाल भर जला रहे विजय का लाल
लाल यह गुलाल, तुम यह सोच लो...
रंग केसरी हो या मृदंग केसरी हो याकि
केसरी हो लाल, तुम यह सोच लो...

जिस कवि की कल्पना में ज़िन्दगी हो प्रेम गीत
उस कवि को आज तुम नकार दो...
भीगती नस्सो में आज, फूलती रगों में आज
आज आग की लपट का तुम बघार दो...

आरम्भ है प्रचंड,बोले मस्तकों के झुंड
आज ज़ंग की घडी की तुम गुहार दो...
आन बान शान या की जान का हो दान
आज एक धनुष के बान पे उतार दो...
आरम्भ है प्रचंड,बोले मस्तकों के झुंड

-- a song from movie GULAAL

Indian Republic: where does it stand....

Democracy is always temporary in nature; it simply cannot exist as a permanent form of government. A democracy will continue to exist up until the time that voters discover that they can vote themselves generous gifts from the public treasury. From that moment on, the majority always votes for the candidates who promise the most benefits from the public treasury, with the result that every democracy will finally collapse due to loose fiscal policy, which is always followed by a dictatorship. The average age of the world's greatest civilizations from the beginning of history has been about 200 years. During those 200 years, these nations always progressed through the following sequence:
  • From bondage to spiritual faith;
  • From spiritual faith to great courage;
  • From courage to liberty;
  • From liberty to abundance;
  • From abundance to complacency;
  • From complacency to apathy;
  • From apathy to dependence; and
  • From dependence back into bondage.
Not sure whether we are faster than the normal growth as stated by many... If yes, then the life of democracy will be over very soon...

A we ready of anarchy or we will prolong our freedom... freedom of everything we do... are we sure that we are free OR we just feel happy in believing so...????

- Kalingaa....

Waqt ki Baatein

Suna Tha Waqt Marham Hai, Har Zakham Bhula Deta Hai
Har Guzra Lamha Hum Ko To, Ek Zakhm Naya Deta Hai.

Raat Ki Rani Hai Ya Teri Yaadoon Ki Khushboo
Kuch To Hai Jo Aangan Mere Ehsaas Ka Mehka Deta Hai.

Agar Tere Khayaalon Mein Kho Kar, Neend Aa Bhi Jaaye
Aakar Khawaboon Mein,Tera Tassawur Hum Ko Jaga Deta Hai.

Khush Hote Hain Tassawur Mein Tumain Kareeb Dekh Kar
Shayad Mil Na Paayenge Hum, Yeh Khadsha Sehma Deta Hai.

Dil Bahut Nazuk Hai, Ghum Se Bhar Na Aaye Kalingaa
Patthar Pe Chot Lage To Woh Bhi Saza Deta Hai.

Dushman Hai Zamana Mohabbat Karne Walun Ka Azal Se
In Dooriyoon, Judaiyoon Ka Ehsaas Rula Deta Hai.

--- Kalingaa...

Dil Aisa Kisine Mera Toda....

After reading abt death of Shakti Saamtha, I checked abt the guy... I saw an incredible list of movies made by him... So one song from his movies which was immortalised by Kishore da...

दिल ऐसा किसी ने मेरा तोडा, बर्बादी की तरफ ऐसा मोडा
एक भले मानुष को अमानुष बना के छोडा

सागर कितना मेरे पास है, मेरे जीवन में फिर भी प्यास है
है प्यास बड़ी जीवन थोडा, अमानुष बना के छोडा

कहते हैं ये दुनिया के रास्ते, कोई मंजिल नहीं तेरे वास्ते
नाकामियों से नाता मेरा जोड़ा, अमानुष बना के छोडा

डूबा सूरज फिर से निकले रहता नहीं है अँधेरा
मेरा सूरज ऐसा रूठा देखा ना मैंने सवेरा

उजालों ने साथ मेरा छोडा, अमानुष बना के छोडा

Hate heals, you should try it sometime :)

Yaad Aaya Kuch to....

Got in mood to write something after a long time... But by the way I'm going to spend summers, a lot more seems in pipelines :)

जब तेरी धुन में जिया करते थे
हम भी चुपचाप पिया करते थे
आँखों में प्यास हुआ करती थी
दिल में तेरी तलाश हुआ करती थी

लोग आते थे कुछ ग़ज़ल सुनने को
हमारी जुबान हुम्हारा ही बयां करती थी
सच समझते थे तेरी वफाओं को
रात दिन तेरी खुमारी में रहा करते थे

किसी वीराने में तुमसे मिल कर
दिल में गुलशन खिला करते थे
घर की दीवारों को सजाने के लिए
हम तुम्हारे ही नाम लिखा करते थे

वो भी क्या 'कलिंग' दिन हुआ करते थे
तुम्हे भुलाकर तुम्हे याद किया करते थे
कल तुम्हे मुद्दत के बाद देखा तो
याद आया कभी हम भी मोहब्बत किया करते थे

Keep Smiling
- Kalinga...