Maine Dil se Kaha (मैने दिल से कहा)

मैने दिल से कहा, ढूँढ लाना खुशी
नासमझ लाया गम, तो यह गम ही सही

मैने दिल से कहा, ढूँढ लाना खुशी
नासमझ लाया गम, तो यह गम ही सही
मैने दिल से कहा ढूँढ लाना खुशी

बेचारा कहाँ जानता था
खलिश है यह क्या खाला है
शहर भर की खुशी से
यह दर्द मेरा भला है
जश्न यह राज़ ना आए
मज़ा तो बस गम में आया है

मैने दिल से कहा, ढूँढ लाना खुशी
नासमझ लाया गम, तो यह गम ही सही

कभी है इश्क़ का उजाला
कभी है मौत का अंधेरा
बताओ कौन बसेरा होगा
मैं जोगी बनूँ या लुटेरा
कई चेहरे हैं इस दिल के
नाजाने कौनसा मेरा

मैने दिल से कहा ढूँढ लाना खुशी
नासमझ लाया गम, तो यह गम ही सही

हज़ारों ऐसे फ़ासले थे
जो तय करने चले थे
राहें मगर चल पड़ी थी
और पीछे हम रह गये थे
कदम दो चार चल पाए
किए फेरे तेरे मन के

मैने दिल से कहा, ढूँढ लाना खुशी
नासमझ लाया गम, तो यह गम ही सही

मैने दिल से कहा, ढूँढ लाना खुशी
नासमझ लाया गम, तो यह गम ही सही 
-- Kalingaa...

Life is what it is....

जीना यहाँ, मारना यहाँ,
इसके सिवा जाना कहाँ
जी चाहे जब हमको आवाज़ दो
हम हैं वहीं, हम थे जहाँ,
अपने यहीं दोनो जहाँ
इसके सिवा जाना कहाँ
जीना यहाँ........

ये मेरा गीत, जीवन संगीत
कल भी कोई दोहराएगा
जग को हंसाने बहुरुपिया
रूप बदल फिर आएगा
स्वर्ग यहीं, नरक यहाँ
इसके सिवा जाना कहाँ
जीना यहाँ......

कल खेल में हम हों ना हों
गर्दिश में तारे रहेंगे सदा
भूलेंगे हम, भूलोगे तुम
पर हम तुम्हारे रहेंगे सदा
रहेंगे यहीं अपने निशान
इसके सिवा जाना कहाँ
जीना यहाँ ...
-- Kalingaa...

ग़ालिब Vs इकबाल Vs फैज़

ग़ालिब :
शराब पीने दे मस्जिद में बैठ कर ...
या वो जगह बता जहाँ पर खुदा नहीं ...

इकबाल :
मस्जिद खुदा का घर है पीने की जगह नहीं ...
काफ़िर के दिल में जा वहां खुदा नहीं .....

फैज़ :
काफ़िर के दिल से आया हूँ ये देख कर ...
खुदा वहां मौजूद है लेकिन उसे पता नहीं ..
-- Kalingaa...

एक ग़म

हर एक रूह में एक ग़म छुपा लगे है मुझे
ये ज़िन्दगी तो कोई बद-दुआ लगे है मुझे


जो आँसू में कभी रात भीग जाती है
बहुत क़रीब वो आवाज़-ए-पा लगे है मुझे


मैं सो भी जाऊँ तो मेरी बंद आँखों में
तमाम रात कोई झाँकता लगे है मुझे


मैं जब भी उस के ख़यालों में खो सा जाता हूँ
वो ख़ुद भी बात करे तो बुरा लगे है मुझे


मैं सोचता था कि लौटूँगा अजनबी की तरह
ये मेरा गाओँ तो पहचाना सा लगे है मुझे


बिखर गया है कुछ इस तरह आदमी का वजूद
हर एक फ़र्द कोई सानेहा लगे है मुझे 

-- जाँ निसार अख़्तर...

मेरे साकी (Mere Saaqi)...

The following came out from a facebook conversation between me and my friend...
आज दिल की रागों को जला दे साक़ी, ज़हर शराब में मिला दे साक़ी.....

इक ऐसा पिला के दूसरा ना मांगू, तड़पती रूह को सुला दे साक़ी....

नींद ऐसी हो की टूटे ना कभी, बेशक़ जिस्म को तड़पने दे साकी....

मेरे ख़यालों ने लूटा है मुझको, कम्बख़्त जहाँ को हिला दे साक़ी.....

या सोने दे मुझे और जागे सारा जहाँ, या सोए सारा जहाँ, जागने दे मुझे साकी....

गम के मारों को बोतल से पीने दे... आज प्याले और पैमाने भुला दे साकी.....

जी जी के बुरा हाल हुआ साकी, मुझे तू अब मारना सीखा दे आए साकी....

जो कुछ सीखा हमने वो सब भूलना है... ज़िंदगी का नया ही सबक कोई बतला दे साकी....

सबा को छोड़, तू मंज़िल को छोड़... बस दिल को बहलना सीखा दे साकी....

रहने दे गीता क़ुरान का इल्म... दिल का राज़ छुपाना सीखा दे साकी.....

याद रखूँगा तो मार ही जाऊँगा, तू मुझे सब भूलना सीखा दे साकी....

और कुछ ना बन पाए तुझसे तो जाने दे, तू मुझे बस सोना सीखा दे आए साकी....

मैं चला भी जाऊं इस मयकदे से तेरे, मेरी जगह किसी और दिलजले को पीला दे साकी...

कुछ कम सा होता जाता है, ला मेरे अश्क इसमे मिला दे साकी....
-- Kalingaa & a dear friend...

Bhula Diya....

कभी आयतो में पढ़ा तुझे, कभी हरफ़ हरफ़ लिखा तुझे
कभी दिल से तुझको पुकार के, कोई शेर अपना कोई सुना दिया
भुला दिया, भुला दिया, तेरे इश्क़ में खुद को भुला दिया

यह अजीब इश्क़ के खेल है, जहाँ लज़्जतों में कमी नहीं
कभी मैने तुझको हंसा दिया, कभी तूने मुझको रुला दिया
भुला दिया, भुला दिया, तेरे इश्क़ में खुद को भुला दिया

बेखुदी में मज़ा आ रहा है बड़ा, दिल तबाह है तो क्या
बेखुदी में मज़ा आ रहा है बड़ा, दिल तबाह है तो क्या

तेरी राह से जो निकल गये, वो दीवाने बनके मचल गये
कभी हमने की तेरी आरज़ू, तो बता दे यह क्या गुनाह किया
भुला दिया, भुला दिया, तेरे इश्क़ में खुद को भुला दिया

कभी आयतो में पढ़ा तुझे, कभी हरफ़ हरफ़ लिखा तुझे
कभी दिल से तुझको पुकार के, कोई शेर अपना कोई सुना दिया
भुला दिया, भुला दिया, तेरे इश्क़ में खुद को भुला दिया
-- Kalingaa...

Hatak (Strong Pull)...

आले भरवा दो मेरे आँखों के
बंद करवा के उनपे ताले लगवा दो
जिस्म के जुम्बईशों पे तुमने पहले ही
तुमने अहकाम बाँध रखे हैं
मेरी आवाज़ रेंग कर निकलती है
ठाँक कर जिस्म भारी पर, तुम दर दरिचों पे पहरे रखते हो
फ़िक्र रहती है रात दिन तुमको कोई सामान चोरी ना करले
एक छोटा सा काम और कर दो
अपनी उंगली डुबो कर रोगन में
तुम मेरे जिस्म पेर लिख दो
इसके जोला हुकूक अब तुम्हारे हैं
इसके जोला हुकूक अब तुम्हारे हैं
इसके सारे हक़ अब तुम्हारे हैं

Recited by Neha Dhupia in 'Dua Kahaniyan'
-- Kalingaa...

Khudkhushi (खुदखुशी)....

बस एक लम्हे का झगड़ा था
दर-ओ-दीवार पे ऐसे छनके से गिरी आवाज़
जैसे काँच गिरता है

हर एक शय मे कई उड़ती हुई जलती हुई गिरजे...
नज़र मे, बात मे, लहजे मे, सोच और समझ के अंदर....

लहू होना था एक रिश्ते का
सो वो हो गया उस दिन
उसी आवाज़ के टुकड़े उठाके फर्श से उस शब
किसी ने काटली नब्ज़े
ना की आवाज़ तक कुछ भी
कि कोई जाग ना जाए

बस..एक लम्हे का झगड़ा था
बस..एक लम्हे का झगड़ा था

Recited by Dia Mirza in 'Dua Kahaniyan'
-- Kalingaa...