One more my earliest writings.... Some other time, same mood...
तुम आज शायद मुझे कहो-- Kalingaa...
कि डरपोक हो गया हूँ...
पर जीना तो मुझे भी है,
इसीलिए समझदार हो गया हूँ...
तुम उसे रोक सकते तो
शायद तुमसे पेशकश करता,
मेरे पास कोई कवच नहीं,
इसीलिए अर्थ बदलकर जीता हूँ....
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