तुम्हारी याद से रिश्ता कल भी था
तुम्हारी याद से रिश्ता आज भी है...
दिल मेरा दुखता कल भी था
और जुदाई सा कुछ आज भी है...
वो प्यार जो तुम और मैं करते थे
वो प्यार तो ज़िंदा आज भी है...
तुम्हारा इश्क़ तुम्हारी वफ़ा ही काफ़ी है
तमाम उम्र यही आसरा काफ़ी है...
जहाँ कहीं भी मिलो, मिलके मुस्कुरा देना
खुशी के वास्ते ये सिलसिला काफ़ी है...
मुझे बहार के मौसम से कुछ नहीं लेना
तुम्हारे प्यार की रंगीन फ़िज़ा ही काफ़ी है...
ये लोग कौनसी मंज़िल की बात करते हैं
मुसाफिरों के लिए रास्ता ही काफ़ी है...
थोड़ी सी ग़लतफहमी कर देगी जुदा हमको
हालत इतने बदल जाएँगे मालूम ना था हमको...
क्या ये रिश्ता इतना कमज़ोर था हमारा?
जिसने चाहा पल भर में तोड़ दिया इसको...
जो एक लम्हे के लिए भी ना मिट सकता था
आज ले कर चलते हैं जुदाई के गम को...
कभी अपने ही रास्ते पर बिछाए थे हमने फूल
आज काँटे बिछाए खुद ही, जगह दी पत्थर को...
अब तो दर्द और तकलीफ़ रहती है इस दिल में
कोई तो आए, मरहम लगाए इस ज़ख़्म को...
अब भी मिलन की आस है किसी के दिल में
कोई ना समझ पाएगा इस प्यार की शिद्दत को...
माना के चाहत अब भी बहुत है हम में
तो क्यूँ ना फिर से उठाएँ प्यार के कदम को...
-- Kalingaa...
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