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मेरे शिकवों पे उसने हंस के कहा फ़राज़, किस ने की थी वफ़ा जो हम करते....Not that I believe in it but still who knows. The pen kept on going....
नाकामी तो देखिए हमारी, कुछ भी नहीं हिम्मत हममें-- Kalingaa...
कभी तो नहीं करते थे उनको याद, आज भूल भी नहीं पाते
दिल भी टूटा, बेइंतहा दर्द भी हुआ, चोट भी लगी, मर्ज़ भी ना मिला
बताना भी चाहा, जताना भी चाहा, साँस रुक गयी, चिल्लाना भी चाहा
सब कुछ लूटा कर होश में आए हैं तो भी क्या
अब उनके ज़ख़्मों पे मरहम लगाएँ तो भी क्या
अगर दिल जलाके चिराग जगाए तो भी क्या
अब अपना सब कुछ उनको बताएँ तो भी क्या
किसी पाक दिल, नूर-ए-खुदा के आगोश में मार पाते
जाने दो अब ये लुत्फ़ 'कलिंग', हमारे नसीब में ही नहीं था
सबको अलग अलग रूप में मिलती है ये ज़िंदगी
अंदाज़े बयान अलग, सबकी अपनी अपनी कहानी है..
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