Another one of my earliest snippets... Some other time, same mood...
तुम एक पुकार हो, और में हूँ उतर!
तुम इच्छा हो और मैं उसकी संपूर्ति!
तुम दिन की रोशनी और मैं रात की ताज़गी!!
शेष क्या? यह सम्पूर्ण है -- पूर्णतया सम्पूर्ण!!!
तुम हो, मैं हूँ - शेष क्या?
आश्चर्य है कि इसके बावजूद भी
हम कलिंग की पीड़ा से मुक्त नहीं!!
Always loved this piece as it was one of rare occasions when I got all words which were more Sanskrit like than Urdu inclined.
-- Kalingaa...
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