कहते है यही दुनिया का दस्तूर है
रंगमंच का हर पात्र इससे मजबूर है
यह कृति है तेरी, हर पुरानी कृति से बेहतर
लेकिन इस कृति को मत काने दे स्वयं से आयेज
तू है इस कृति का रचीयता, निर्माता
नहीं है ये कृति तेरी मार्गदर्शक, भाग्यविधाता
नवनिर्माण का तू प्रण ले, अभिज्ञान ले
इस कृति को संसार के हाथ दान दे
तू कला का भक्त है, इस क्षणभंगूर कृति का नहीं
तुझे सर्जन की तृप्ति चाहिए, जाग की प्रसिद्दी नहीं
लोलुप भावों का दमन कर, आज फिर सर्जन कर
मान में कला को सतत कर, स्वपन को सनातन कर...
रंगमंच का हर पात्र इससे मजबूर है
यह कृति है तेरी, हर पुरानी कृति से बेहतर
लेकिन इस कृति को मत काने दे स्वयं से आयेज
तू है इस कृति का रचीयता, निर्माता
नहीं है ये कृति तेरी मार्गदर्शक, भाग्यविधाता
नवनिर्माण का तू प्रण ले, अभिज्ञान ले
इस कृति को संसार के हाथ दान दे
तू कला का भक्त है, इस क्षणभंगूर कृति का नहीं
तुझे सर्जन की तृप्ति चाहिए, जाग की प्रसिद्दी नहीं
लोलुप भावों का दमन कर, आज फिर सर्जन कर
मान में कला को सतत कर, स्वपन को सनातन कर...
-- Kalingaa...
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