आज हम चल दिए हैं तेरे वतन से
असल में सलीके से मिले ही नहीं हम आज तक
अब शायद दीदार-ए-यार भी मयस्सर ना हो
वादा है हमारा, ना भूलेंगे कभी तुम्हें
वो तुम्हारा ग़लती से हमसे बतियाना
और हमारा एकटक, फिर बारम्बार तुम्हे देखना
तुम तो अपने ही जहाँ में मसरूफ़ थे
ना होश था तुम्हे कलिंग जैसे अजनबी का
तुमने अंजाने में हमे दीवाना कर दिया
इश्क़ के नशे से बर्बाद कर दिया...
ना हमारा कुछ लूटा है, ना कुछ बचा है
जाते वक़्त इक इल्तजा रखते हैं आपसे
एक झलक और नसीब हो हमारे हुस्न-ए-यार की
आपकी एक आख़िरी तस्वीर हमारे लिए नायाब बने...
हमारे इश्क़ का अहसास आपके लिए नायाब बने...
-- Kalingaa...
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