... नदी को पर्वत की
... दरखत को ज़मीन की
... पानी को प्यास की
... घास को गाय की
... बच्चे को मां की
... कपड़े को नंगे की
... आँख को अंधे की
... कुत्ते को पट्टे की
... बैल को सींग की
... खंज़र को खून की
... हमको ज़ुनून की
... सर्कस को जोकर की
... नौकर को मालिक की
... भगवान को भक्त की
... हुस्न को आशिक़ की
... पैसे को इंसान की
... कलम को लेखक की
... काग़ज़ को कविता की
... मक़ान को परिवार की
... रास्ते को राही की
... क़ातिल को गवाही की
... बंदे को बंधन की
... राधा को नंदन की
... गधे को चंदन की
... बंदर को आभूषण की
... खूबसूरती को आकर्षण की
... रूपाली को कलिंग की
... इस फेहरिस्त को और दलीलों की
आवश्यकता किसको नहीं है ...
-- Kalingaa...
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