Watched a really nice short film "Shoot" on a fictional football match between Indo-Pak Soldiers played in No Man's Land. This poem was part & soul of the film.
-- Kalingaa...
ये बतादे मुझे ज़िंदगी...
मेरी राह के हमसफ़र
किस तरह बन गये अजनबी
ये बतादे मुझे ज़िंदगी...
फूल क्यूँ सारे मुरझा गये
किस लिए बुझ गयी चाँदनी
ये बतादे मुझे ज़िंदगी...
कल जो बाहों में थी और निगाहों में थी
अब वो गर्मी कहाँ खो गयी
ना वो अंदाज़ ना वो आवाज़
अब वो नर्मी कहाँ खो गयी
ये बतादे मुझे ज़िंदगी...
बेवफा हम नहीं, बेवफा तुम नहीं
फिर वो जज़्बात क्यूँ सो गये
प्यार तुमको भी है, प्यार हमको भी है
फ़ासले फिर ये क्या हो गये
ये बतादे मुझे ज़िंदगी...
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