चाँद तन्हा है आसमान तन्हा, दिल मिला है कहाँ कहाँ तन्हा...
बुझ गई आस छुप गया तारा, थरथरता रहा धुआँ तन्हा...
ज़िंदगी क्या इसी को कहते हैं, जिस्म तन्हा है और जान तन्हा...
हम-सफ़र कोई गर मिले भी कहीं, दोनों चलते रहे तन्हा तन्हा...
जलती बुझती सी रोशनी के परे, सिमटा सिमटा सा एक मकान तन्हा...
राह देखा करेगा सदियों तक, छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा...
- Meena Kumari
No comments:
Post a Comment