Fitrat (फ़ितरत)

किसी के चाह के काबिल नहीं हूँ
मैं ना कोई राह, कोई मंज़िल भी नहीं हूँ...

मुझे पाकर ना पाओगे तुम कोई किनारा
नज़र का भ्रम हूँ, साहिल तो नहीं हूँ...

मेरा मांझी ही मेरा मुंसिफ बना है
कैसे कहूँ कि मैं क़ातिल तो नहीं हूँ...

किया है 'कलिंग' के हादसों ने दिल को पत्थर
वरना फ़ितरत से तो पत्थर-दिल नहीं हूँ....

- Kalingaa....

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