मजनूँ ने जवाब दित्ता "ओ तेरी अख्ख ना वेखन वाली वे"...
"वेद भी चिटा ते क़ुरान भी चिटी; विच स्याही रख दिति काली वे"
"गुलाम फरीद जित्ते अखियाँ लगियाँ ओते क्या गोरी क्या काली वे"...
गरदन पर किसका पाप वीर ! ढोते हो ?खण्ड दो:
शोणित से तुम किसका कलंक धोते हो ?
उनका, जिनमें कारुण्य असीम तरल था,
तारुण्य-ताप था नहीं, न रंच गरल था;
सस्ती सुकीर्ति पा कर जो फूल गये थे,
निर्वीर्य कल्पनाओं में भूल गये थे;
गीता में जो त्रिपिटक-निकाय पढ़ते हैं,
तलवार गला कर जो तकली गढ़ते हैं;
शीतल करते हैं अनल प्रबुद्ध प्रजा का,
शेरों को सिखलाते हैं धर्म अजा का;
सारी वसुन्धरा में गुरु-पद पाने को,
प्यासी धरती के लिए अमृत लाने को
जो सन्त लोग सीधे पाताल चले थे,
(अच्छे हैं अबः; पहले भी बहुत भले थे।)
हम उसी धर्म की लाश यहाँ ढोते हैं,
शोणित से सन्तों का कलंक धोते हैं।
खण्ड तीन:
हे वीर बन्धु ! दायी है कौन विपद का ?
हम दोषी किसको कहें तुम्हारे वध का ?
यह गहन प्रश्न; कैसे रहस्य समझायें ?
दस-बीस अधिक हों तो हम नाम गिनायें।
पर, कदम-कदम पर यहाँ खड़ा पातक है,
हर तरफ लगाये घात खड़ा घातक है।
घातक है, जो देवता-सदृश दिखता है,
लेकिन, कमरे में गलत हुक्म लिखता है,
जिस पापी को गुण नहीं; गोत्र प्यारा है,
समझो, उसने ही हमें यहाँ मारा है।
जो सत्य जान कर भी न सत्य कहता है,
या किसी लोभ के विवश मूक रहता है,
उस कुटिल राजतन्त्री कदर्य को धिक् है,
यह मूक सत्यहन्ता कम नहीं वधिक है।
चोरों के हैं जो हितू, ठगों के बल हैं,
जिनके प्रताप से पलते पाप सकल हैं,
जो छल-प्रपंच, सब को प्रश्रय देते हैं,
या चाटुकार जन से सेवा लेते हैं;
यह पाप उन्हीं का हमको मार गया है,
भारत अपने घर में ही हार गया है।
है कौन यहाँ, कारण जो नहीं विपद् का ?
किस पर जिम्मा है नहीं हमारे वध का ?
जो चरम पाप है, हमें उसी की लत है,
दैहिक बल को रहता यह देश ग़लत है।
नेता निमग्न दिन-रात शान्ति-चिन्तन में,
कवि-कलाकार ऊपर उड़ रहे गगन में।
यज्ञाग्नि हिन्द में समिध नहीं पाती है,
पौरुष की ज्वाला रोज बुझी जाती है।
ओ बदनसीब अन्धो ! कमजोर अभागो ?
अब भी तो खोलो नयन, नींद से जागो।
वह अघी, बाहुबल का जो अपलापी है,
जिसकी ज्वाला बुझ गयी, वही पापी है।
जब तक प्रसन्न यह अनल, सुगुण हँसते है;
है जहाँ खड्ग, सब पुण्य वहीं बसते हैं।
वीरता जहाँ पर नहीं, पुण्य का क्षय है,
वीरता जहाँ पर नहीं, स्वार्थ की जय है।
तलवार पुण्य की सखी, धर्मपालक है,
लालच पर अंकुश कठिन, लोभ-सालक है।
असि छोड़, भीरु बन जहाँ धर्म सोता है,
पातक प्रचण्डतम वहीं प्रकट होता है।
तलवारें सोतीं जहाँ बन्द म्यानों में,
किस्मतें वहाँ सड़ती है तहखानों में।
बलिवेदी पर बालियाँ-नथें चढ़ती हैं,
सोने की ईंटें, मगर, नहीं कढ़ती हैं।
पूछो कुबेर से, कब सुवर्ण वे देंगे ?
यदि आज नहीं तो सुयश और कब लेंगे ?
तूफान उठेगा, प्रलय-वाण छूटेगा,
है जहाँ स्वर्ण, बम वहीं, स्यात्, फूटेगा।
जो करें, किन्तु, कंचन यह नहीं बचेगा,
शायद, सुवर्ण पर ही संहार मचेगा।
हम पर अपने पापों का बोझ न डालें,
कह दो सब से, अपना दायित्व सँभालें।
कह दो प्रपंचकारी, कपटी, जाली से,
आलसी, अकर्मठ, काहिल, हड़ताली से,
सी लें जबान, चुपचाप काम पर जायें,
हम यहाँ रक्त, वे घर में स्वेद बहायें।
हम दें उस को विजय, हमें तुम बल दो,
दो शस्त्र और अपना संकल्प अटल दो।
हों खड़े लोग कटिबद्ध वहाँ यदि घर में,
है कौन हमें जीते जो यहाँ समर में ?
हो जहाँ कहीं भी अनय, उसे रोको रे !
जो करें पाप शशि-सूर्य, उन्हें टोको रे !
जा कहो, पुण्य यदि बढ़ा नहीं शासन में,
या आग सुलगती रही प्रजा के मन में;
तामस बढ़ता यदि गया ढकेल प्रभा को,
निर्बन्ध पन्थ यदि मिला नहीं प्रतिभा को,
रिपु नहीं, यही अन्याय हमें मारेगा,
अपने घर में ही फिर स्वदेश हारेगा।
किरिचों पर कोई नया स्वप्न ढोते हो ?Keep Smiling
किस नयी फसल के बीज वीर ! बोते हो ?
दुर्दान्त दस्यु को सेल हूलते हैं हम;
यम की दंष्ट्रा से खेल झूलते हैं हम।
वैसे तो कोई बात नहीं कहने को,
हम टूट रहे केवल स्वतंत्र रहने को।
सामने देश माता का भव्य चरण है,
जिह्वा पर जलता हुआ एक, बस प्रण है,
काटेंगे अरि का मुण्ड कि स्वयं कटेंगे,
पीछे, परन्तु, सीमा से नहीं हटेंगे।
फूटेंगी खर निर्झरी तप्त कुण्डों से,
भर जायेगा नागराज रुण्ड-मुण्डों से।
माँगेगी जो रणचण्डी भेंट, चढ़ेगी।
लाशों पर चढ़ कर आगे फौज बढ़ेगी।
पहली आहुति है अभी, यज्ञ चलने दो,
दो हवा, देश की आज जरा जलने दो।
जब हृदय-हृदय पावक से भर जायेगा,
भारत का पूरा पाप उतर जायेगा;
देखोगे, कैसा प्रलय चण्ड होता है !
असिवन्त हिन्द कितना प्रचण्ड होता है !
बाँहों से हम अम्बुधि अगाध थाहेंगे,
धँस जायेगी यह धरा, अगर चाहेंगे।
तूफान हमारे इंगित पर ठहरेंगे,
हम जहाँ कहेंगे, मेघ वहीं घहरेंगे।
जो असुर, हमें सुर समझ, आज हँसते हैं,
वंचक श्रृगाल भूँकते, साँप डँसते हैं,
कल यही कृपा के लिए हाथ जोडेंगे,
भृकुटी विलोक दुष्टता-द्वन्द्व छोड़ेंगे।
गरजो, अम्बर की भरो रणोच्चारों से,
क्रोधान्ध रोर, हाँकों से, हुंकारों से।
यह आग मात्र सीमा की नहीं लपट है,
मूढ़ो ! स्वतंत्रता पर ही यह संकट है।
जातीय गर्व पर क्रूर प्रहार हुआ है,
माँ के किरीट पर ही यह वार हुआ है।
अब जो सिर पर आ पड़े, नहीं डरना है,
जनमे हैं तो दो बार नहीं मरना है।
कुत्सित कलंक का बोध नहीं छोड़ेंगे,
हम बिना लिये प्रतिशोध नहीं छोड़ेंगे,
अरि का विरोध-अवरोध नहीं छोड़ेंगे,
जब तक जीवित है, क्रोध नहीं छोड़ेंगे।
गरजो हिमाद्रि के शिखर, तुंग पाटों पर,
गुलमार्ग, विन्ध्य, पश्चिमी, पूर्व घाटों पर,
भारत-समुद्र की लहर, ज्वार-भाटों पर,
गरजो, गरजो मीनार और लाटों पर।
खँडहरों, भग्न कोटों में, प्राचीरों में,
जाह्नवी, नर्मदा, यमुना के तीरों में,
कृष्णा-कछार में, कावेरी-कूलों में,
चित्तौड़-सिंहगढ़ के समीप धूलों में—
सोये हैं जो रणबली, उन्हें टेरो रे !
नूतन पर अपनी शिखा प्रत्न फेरो रे !
झकझोरो, झकझोरो महान् सुप्तों को,
टेरो, टेरो चाणक्य-चन्द्रगुप्तों को;
विक्रमी तेज, असि की उद्दाम प्रभा को,
राणा प्रताप, गोविन्द, शिवा, सरजा को;
वैराग्यवीर, बन्दा फकीर भाई को,
टेरो, टेरो माता लक्ष्मीबाई को।
आजन्मा सहा जिसने न व्यंग्य थोड़ा था,
आजिज आ कर जिसने स्वदेश को छोड़ा था,
हम हाय, आज तक, जिसको गुहराते हैं,
‘नेताजी अब आते हैं, अब आते हैं;
साहसी, शूर-रस के उस मतवाले को,
टेरो, टेरो आज़ाद हिन्दवाले को।
खोजो, टीपू सुलतान कहाँ सोये हैं ?
अशफ़ाक़ और उसमान कहाँ सोये हैं ?
बमवाले वीर जवान कहाँ सोये हैं ?
वे भगतसिंह बलवान कहाँ सोये हैं ?
जा कहो, करें अब कृपा, नहीं रूठें वे,
बम उठा बाज़ के सदृश व्यग्र टूटें वे।
हम मान गये, जब क्रान्तिकाल होता है,
सारी लपटों का रंग लाल होता है।
जाग्रत पौरुष प्रज्वलित ज्वाल होता हैं,
शूरत्व नहीं कोमल, कराल होता है।
Was royalty bestowed on Warne by chance?
The best thing that happened to the Rajasthan Royals, the inaugural IPL champions, might have occurred by chance. They never intended to buy Shane Warne at the auction but ended up with him because he was the first player on sale - or so say the authors of an upcoming book 'IPL - an inside story'.
The book has what it says is an eye-witness account of the first auction by the CEO of a franchise. "Warne's was the first name that came up as the 78 players' names were picked up. But no one was willing to pick him up at the reserve price. The auction was headed for disaster within the first few minutes.
"Since [Lalit] Modi has some interest in the Jaipur team, he made eye contact with [Manoj] Badale and Co. and nudged them to start bidding. Jaipur raised the placard, hoping other teams would jump into the fray. But no other team bid for Warne. Jaipur, it seemed, was saddled with Warne." Less than four months later Jaipur had the last laugh, and the others were left looking foolish, as Warne reinvented himself with spectacular success.
Mumbai is the best!!! This Is Mumbai.
A CITY where everything is possible Especially the impossible.
Where lovers first love and then marry,
Where there is place for every Tom, Dick and Harry.
Where telephone bills make a person ill,
Where a person cannot sleep without a pill.
Where carbon dioxide is more than oxygen,
Where the road is considered to be a dustbin,
Where college canteens are full and classes empty,
Where Adam teasing is also making an entry,
Where a cycle reaches faster than a car,
Where everyone thinks himself to be a star,
Where sky scrapers overlook the slum,
Where houses collapse as the monsoon comes,
Where people first act and then think,
Where there is more water in the pen than ink,
Where the roads see-saw in monsoon,
Where the beggars become rich soon,
Where the roads are levelled when the minister arrives,
Where college admission means hard cash,
Where cement is frequently mixed with ash.
This is Mumbai my dear,
But don't fear, just cheer,
Come to Mumbai every year !
चक्रव्यूह में घुसने से पहले,
कौन था मैं और कैसा था,
यह मुझे याद ही ना रहेगा.
चक्रव्यूह में घुसने के बाद,
मेरे और चक्रव्यूह के बीच,
सिर्फ एक जानलेवा निकटता थी,
इसका मुझे पता ही ना चलेगा.
चक्रव्यूह से निकलने के बाद,
मैं मुक्त हो जाऊं भले ही,
फिर भी चक्रव्यूह की रचना में
फर्क ही ना पड़ेगा.
मरुँ या मारून,
मारा जाऊं या जान से मार डालूं.
इसका फैसला कभी ना हो पायेगा.
सोया हुआ आदमी जब
नींद से उठकर चलना शुरू करता है,
तब सपनों का संसार उसे,
दोबारा दिख ही ना पायेगा.
उस रौशनी में जो निर्णय की रौशनी है
सब कुछ समान होगा क्या?
एक पलडे में नपुंसकता,
एक पलडे में पौरुष,
और ठीक तराजू के कांटे पर
-- अर्धसत्य.Keep your soul alive
-- Kalingaa...