Woh Manzil...

आजकल मन ये सोच सोच मचल उठता है
ये करता तो क्या होता, वो करता तो क्या होता
वो मंज़िल दिखाई दी जिसकी राह छोड़ चले थे
अगर चल पड़ता उस डगर, मेरा नियती क्या होता...

आज पहुँच चुका हूँ मुद्रा चलित संसार में
सोने के बाज़ार में, रोशनी की भरमार में
पकड़ ली थी ज़ी को भरमाने वाली राह
अपने मन पर संयम रख निर्णय लेता तो क्या होता....

बचपन में हमने केवल छोटा संसार देखा था
लेकिन हर रात हमने दोस्तों के साथ बड़ा स्वपन संजोया था
भविष्या का हर दरवाज़ा हमारे मिले खुलने को तैय्यर है
कलिंग अपने अतीत से भी जुड़ पाता तो बुरा क्या होता
बिछुडा हर दोस्त, भूल गया हमे हर परिचित
बाज़ार में कुछ रिश्ता ना बिकता, बच जाता तो क्या होता..
-- Kalingaa...

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