Yaad...

मैं जब भी तेरे गमों को भुलाने लगता हूँ
तो और भी तेरे नज़दीक आने लगता हूँ

अजीब रोशनी उलफत मुझे सिखाती है
किसी अंधेरे में जब डूब जाने लगता हूँ

दुखों से जब भी मेरी आह उठने लगती है
सदा मैं गीत तेरे गुनगुनाने लगता हूँ

वतन से दूर सही दिल तो वहीं अटका है
दर-ए-गैर को जब लौट जाने लगता हूँ

मैं तेरी याद में दिल ग़मज़ड़ा नहीं करता
मैं तेरे नाम की शमीमें जलाने लगता हूँ

मेरी ग़ज़ल को मिली है बहुत महफिलें
मेरे हबीब में तेरे तराने लगता हूँ

निकाल के मैं दिल अपना रखूं हथेली पर
तेरी गली से मैं जब भी गुज़रने लगता हूँ

बहुत थके हुए हों जब जिस्म-ओ-जान
तेरे फिराक़ में मैं आँसू बहाने लगता हूँ
- Anonymous
-- Kalingaa...

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