Ghazal Ki Sachchi Kitaab (ग़ज़ल की सच्ची किताब)

यूं ही बेसबब ना फिरा करो, कोई शाम घर भी रहा करो
वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है, उसे चुपके चुपके पढ़ा करो

कोई हाथ भी ना मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से
ये नए मिजाज का शहर है, ज़रा फासले से मिला करो

अभी राह में कई मोड़ हैं, कोई आयेगा कोई जाएगा
तुम्हें जिसने दिल से भुला दिया उसे भूलने की दुआ करो

मुझे इश्तहार सी लगती हैं, ये मोहब्बतों की कहानियां
जो कहा नहीं वो सुना करो, जो सुना नहीं वो कहा करो

-- Kalingaa...

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