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मंज़िल तो मिल ही जाएगी, भटक कर के ही सही... गुमराह तो वो हैं, जो घर से निकले ही नहीं...

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ये नूर कैसा है, राख का सा रंग पहना है...... हर एक मोड़ पे बस दो ही नाम मिलते हैं, मौत कह लो अगर मुहब्बत ना कहने पाओ.....


-- Kalingaa...

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