Ek Pagli si Ladki...

Sometime we remember the lines written by someone else which echoes our feeling perfectly and precisely even when we struggle to utter a sigh... This doesn't mean that we can't express but we are not able to collect our thoughts as we are driven by emotions at that point of time. We wish we can speak and bring the conversation but had to resort to silence and wish that others will gauge our expressions by looking into our eyes. Technology of ditant communication has struck this possibility so bad that most of us now give up & wish for loss rather than waiting for it to happen....

One such poem is written by Kumar Vishwas which would have given me a chance to convey something....
अमावस की काली रातों में दिल का दरवाजा खुलता है,
जब दर्द की प्याली रातों में गम आँसू के संग होते हैं,
जब पिछवाड़े के कमरे में हम निपट अकेले होते हैं,
जब घड़ियाँ टिक-टिक चलती हैं, सब सोते हैं, हम रोते हैं,
जब बार बार दोहराने से सारी यादें चूक जाती हैं,
जब उँच-नीच समझने में माथे की नस दुख जाती हैं,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मारना भी भारी लगता है...

जब पोथे खाली होते हैं, जब हरफ़ सवाली होते हैं,
जब ग़ज़लें रास नहीं आतीं, अफ़साने गाली होते हैं.
जब बासी फीकी धूप समेटे दिन जल्दी ढल जाता है,
जब सूरज का लसक़र छत से गलियों में देर से जाता है,
जब जल्दी घर जाने की इच्छा मन ही मन घुट जाती है,
जब कॉलेज से घर लाने वाली पहली बस छुट जाती है,
जब बेमन से खाना खाने पर माँ गुस्सा हो जाती है,
जब लाख माना करने पर भी पारो पढ़ने आ जाती है,
जब अपना हर मनचाहा काम कोई लाचारी लगता है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मारना भी भारी लगता है...

जब कमरे में सन्नाटे की आवाज़ सुनाई देती है,
जब दर्पण में आँखों के नीचे छाई दिखाई देती है,
जब बडकी भाभी कहती हैं, कुछ सेहत का भी ध्यान करो,
क्या लिखते हो दिनभर, कुछ सपनों का भी सम्मान करो,
जब बाबा वाली बैठक में कुछ रिश्ते वाले आते हैं,
जब बाबा हमें बुलाते हैं, हम जाते हैं, घबराते हैं,
जब साड़ी पहने एक लड़की का एक फोटो लाया जाता है,
जब भाभी हमे मनाती हैं, फोटो दिखलाया जाता है,
जब सारे घर का समझना हमको फनकारी लगता है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मारना भी भारी लगता है...

दीदी कहती हैं उस पगली लड़की की कुछ औकात नहीं,
उसके दिल में भैया तेरे जैसे प्यारे जज़्बात नहीं,
वो पगली लड़की नौ दिन मेरे लिए भूखी रहती है,
चुप-चुप सारे व्रत करती है, पर मुझसे कभी ना कहती है,
जो पगली लड़की कहती है, मैं प्यार तुम्ही से करती हूँ,
लेकिन मैं हूँ मजबूर बहुत, अम्मा-बाबा से डरती हूँ,
उस पगली लड़की पर अपना कुछ अधिकार नहीं बाबा,
यह कथा-कहानी किस्से हैं, कुछ भी तो सार नहीं बाबा,
बस उस पगली लड़की के संग जीना फुलवारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है...

- डॉक्टर कुमार विश्वास
-- Kalingaa...

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